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श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर स्वयं संस्था ने किया वृक्षारोपण

 देहरादून। श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस के अवसर पर स्वयं संस्था के द्वारा  एक संगोष्ठी का आयोजन ग्राम धूलकोट में किया गया। इस अवसर पर डॉ. (श्रीमती) कुसुम रानी नैथानी ने श्रीदेव सुमन के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बलिदानी श्रीदेव सुमन की जन्मभूमि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में है । उनका जन्म 25 मई, 1916 को बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में श्रीमती तारादेवी व श्री राम बडोनी के घर हुआ था। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा चम्बा  टिहरी से पाई। संवेदनशील हृदय होने के कारण वे 'सुमन' उपनाम से कवितायें लिखते थे। उन्होंने
राजा के कारिंदों द्वारा जनता पर किये जाने वाले अत्याचारों को बहुत करीब से देखा। 
1930 में चौदह वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने 'नमक सत्याग्रह' में भाग लिया। थाने में बेतों से पिटाई कर उन्हें पंद्रह दिन के लिये जेल भेज दिया गया।  इससे भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ। जब भी जेल जाने का आह्वान होता, वे सदा अग्रिम पंक्ति में खड़े हो जाते। इसके साथ ही उन्होंने साहित्य रत्न, साहित्य भूषण, प्रभाकर,
विशारद जैसी परीक्षायें उत्तीर्ण कीं. 1937 में उनका कविता संग्रह 'सुमन सौरभ' प्रकाशित  हुआ। वे राज, राष्ट्रमत, कर्मभूमि जैसे हिन्दी व अंग्रेजी पत्रों के सम्पादन से जुड़े रहे. वे 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' के भी सक्रिय कार्यकर्ता थे। 1939 में सामन्ती अत्याचारों के विरुद्ध 'टिहरी राज्य प्रजा मंडल' की स्थापना हुईं और सुमन जी इसके मंत्री बनाये गये। इसके लिये वे वर्धा में गांधी जी से भी मिले। 21 जनवरी, 1944 को उन पर राजद्रोह का मुकदमा ठोक कर भारी आर्थिक दंड लगा दिया गया। उन्होंने अविचलित रहते हुए अपना मुकदमा स्वयं लड़ा और अर्थदंड की बजाय जेल स्वीकार की। शासन ने बौखलाकर उन्हें काल
कोठरी में ठूंसकर भारी हथकड़ियां पहना दीं। उन पर अमानवीय अत्याचार किए गये। उन्हें जानबूझ कर खराब खाना दिया जाता था। यह देख कर उन्होंने तीन मई, 1944 से आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया।शासन ने उनका अनशन तुड़वाने का बहुत प्रयास किया पर वे अडिग रहे और चौरासी दिन बाद 25 जुलाई, 1944 को जेल में ही उन्होंने शरीर त्याग दिया
सुमन जी के बलिदान के पश्चात् टिहरी राज्य में आंदोलन और तेज हो गया। एक अगस्त, 1949 को टिहरी राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय हुआ। तब से प्रतिवर्ष 25 जुलाई को उनकी स्मृति में 'सुमन दिवस' मनाया जाता है। उनके बलिदान दिवस पर हर साल विभिन्न स्थानों पर वृक्षारोपण किया जाता है। स्वयं संस्था ने धूलकोट गांव  में आम, लीची, अमरूद एवं नींबू प्रजाति के दो दर्जन फलदार पेड़ लगाए। इस अवसर पर कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती सोनाली चौधरी ने कहा कि हम सबको अपने घरों तथा आसपास सी खाली जमीन पर बरसात की मौसम में वृक्ष अवश्य लगाने  जाने चाहिए। वृक्ष हमें फल, फूल, चारा और छाया देने के अलावा पर्यावरण को स्वच्छ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
इस अवसर पर डॉ. उमेश नैथानी, श्रीमती मंजु सक्सेना, मनीष कुमार, श्रीमती मीनाक्षी, नीतेश, श्रीमती कौशल्या देवी, श्रीमती शांति, श्रीमती नेहा,श्री नितिन, श्रीमती श्वेता, श्रीमती सरिता, अभिषेक, नीरज, कु. अंशिका अन्य आमंत्रित अतिथि उपस्थित थे।